तेरी सोच



तेरे शहर तेरी सोच से निकल जाऊंगा,
किसी उदास शाम में ढल जाऊंगा,
तू जो मुकर गया है हर बात से अपनी,
देख लेना एक दिन मैं भी बदल जाऊंगा,
मत दिखा मुझ को अपना ये मासूम चेहरा,
जब के तू जनता है में पिघल जाऊंगा,
चाहे लाख तड़प लूं तेरे इंतज़ार में,
मत लौट के आना मैं संभल जाऊंगा,
तेरा होना इतना ज़रूरी तो नहीं है,
मैं तो यादों के खिलोने से बेहल जाऊंगा।

column : Bhula Do
Author : Ankit Kumar Aggarwal
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