Column : Bhula Do
Author : Ankit Kumar Aggarwal
परवाह मुझे है कितनी तुम्हारी
मेरे अश्को से तुम जान लो
हक़ीकत के हम्मसाए से निकली ये
कैसी सी रंगत इसे तुम पहचान लो
वो कैसी इबादत वो कैसी कशिश थी
मुझसे जो मुझसे वो जुड़ा कर रही थी
ना जाने किस रास्ते पे चल रहा था ये सख्श
काश तुमने पहचाना होता ये अक्स
आख़िर मे वोही एक रह गया
बस पूछो ना जाने कैसे जी गया
करता रहा वो सितम से दोस्ती
ओर युहि परवाह करते करते मर गया
!!!!!!
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