परेशान थी चिंटू की वाइफ
नों-हॅपनिंग थी जो उसकी लाइफ
चिंटू को ना मिलता था आराम
ऑफीस मैं करता काम ही काम
चिंटू के बॉस भी थे बड़े कूल
प्रमोशन को हर बार जाते थे भूल
पर भूलते नही थे वो डेडलाइन
काम तो करवाते थे रोज़ टिल नाइन
चिंटू भी बन ना चाहता था बेस्ट
इसलिए तो वो नही करता था रेस्ट
दिन रात करता वो बॉस की गुलामी
ऑनसाइट के उम्मीद मैं देता सलामी
दिन गुज़रे और गुज़रे फिर साल
बुरा होता गया चिंटू का हाल
चिंटू को अब कुछ याद ना रहता था
ग़लती से बीवी को बहेनजी कहता था
आख़िर एक दिन चिंटू को समझ आया
और छोड़ दी उसने ऑनसाइट की मोह माया
बॉस से बोला, "तुम क्यों सताते हो ?"
"ऑनसाइट के लड्डू से बुड्दू बनाते हो"
"प्रमोशन दो वरना चला जौंगा"
"ऑनसाइट देने पर भी वापिस ना आ-उँगा
"यह दुनिया चिंटू-ओ से भारी है"
"सबको बस आगे बढ़ने की पड़ी है"
"तुम ना करोगे तो किसी और से करा-उँगा"
"तुम्हारी तरह एक और चिंटू बना-उँगा !!!!!!!!!!!
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