author : kamal bhatt
column : kamal ki kalam se.
blog : Aangan Ke Geet
हां अब ये भी होगा कि, सत्य कहना पड़ेगा |
वो नहीं जो हम जानते ,या चाहते है होना, बल्की वो जो हम हैं | यकीनन हमें यू ही गले उतारना कठिन हो जाएगा, क्योंकी हम वो दिखना बंद कर देंगे , जो होने की हमसे अपेक्षा की जाती है !
यह अपने प्रति प्यार है की आप जैसे हैं अपने को वैसा ही अपनाते हुए वो बनने की कोशिस कर रहें है, जो आप होना चाहते हैं !
पाना क्षणिक है, होना चिरकालीन !
यहां हमे डर है कि हम उन वस्तुओ या व्यक्तियों को खो देंगे जिनसे हमारा लगाव है | पर हम खुद को समझा रहें होते है कि नहीं " ये तो मै उसकी खुशी के लिये करता हूं"| आनन्द सत्य में निहित है । ये कहना कि,
' मैं नही जानता कि मै क्या करना चाहता हूं ', इक झूठ है !
हम निर्णय से बचने की कोशिस मे रहते हैं, निर्णय , कामना और उद्दे्श्य क बीच | परेशानी ये नहीं के हम सही निर्णय लेने से डरते है बल्की ये की हम स्वीकार नहीं कर पाते की , हां ! मुझमे सही निर्णय लेने का साहस नहीं, मै अपनी इच्छाये पूरी करना चाहता हूं, और कि " हां ! मै स्वार्थी हूं !"
इस निर्णय मे कारक ,कोई बाहरी बहस या द्रष्टिकोण सहायता नहीं कर सकता! होना ,ना होना ,इक अगली सीड़ी है,किंतु वो तब जब हम स्वयं को स्वीकार कर पाये. कि हां .मैं हूं ! अपूर्ण हूं |
किंतु मै प्रयासरत हूं।
(कम से कम इस बात को हम झुठला नहीं सकते की हम सभी प्रयास रत है, और यह इस बात का संकेत है कि हम जो हैं उस से संतुष्ट नहीं )
यह खुद के प्रति भाव है कि जब मै खुद को ऐसे स्वीकार नहीं कर सकता तो मै और किसी को कैसे स्वीकार करूंगा! यह एक अप्रतिम मोड़ होगा जहां आपको यह समझ आता है कौन हमे स्वीकार करता है बजाय कि हमारे व्यक्तित्व को ! परखने से ना डरे क्योंकी कड़वाहट शहद के स्वाद का पता बताएगी !कोई अपना नहीं रहेगा पर जो अपना था हमेसा, वो कैसे नहीं रहेगा। ।
जो नहीं था , क्या फ़र्क पड़ता है. !
स्वीकार करूं सारी अपूर्णता को, सारे दुखो कों, मद मोह लोभ काम क्रोध को, ! मै तो करूं अभी खुद को स्वीकार | कि कैसे झुठलाउं ?
और कब तक?
यह मान लेना चाहता हूं कि जो किया है, कर रहा हूं , करूंगा,. केवल और केवल अपने लिये.!
जब शेर यह समझ जाएगा कि वह शेर है तो उसे स्वीकार किये जाने का डर नहीं रहता, तब तक उसकी पूंछ हड्डी के बेस्वाद टुकड़े के लिये हिलती रहती है, जिसे वो खुद भी बेस्वाद जान जाता है किंतु कुछ आदत के कारण और कुछ इस वजह से कि कुछ और कर नहीं सकता !
(कितना सत्य कि जो आप खुद को समझते हैं उस से अधिक कभी नही हो सकते, इसलिय खुद के विषय में इतना सोचना बंद कर देना चाहिये)
अभी के लिये ’क्या होना चाहिये’,...वो अपनी जगह.
अभी के लिये दुनिया मेरे होने से तो पता नहीं पर मेरे होने के लिये ही है.!
लिखे जाने तक मेरे साथ तुम भी भाड़ मे चलो.।
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