author : kamal bhatt
column : kamal ki kalam se...
काश तेरे आंगन मे धूप का एक कोना हो..
और हो इक गिरहा .. छन छन कर बरसात भी..
अलसाती सी दूब हो..
लहलहाती भी खूब हो..
खिड़की पर चांद का बसेरा हो,
हर रोशनी से खूबसूरत अन्धेरा हो..
ओस की फ़ुहारे हो..
ढलती शामो मे किनारे हो..
इक नदी का छपछपाना हो..
होटो में दबी गजल का गुनगुनाना हो..
कच्ची नरम मिट्टी को कुरेदती..
किसी आम का बचपन भी हो..
गुलमोहरों को एक टक निहारती...
किसी पीपल का यौवन भी हो..
किसी डाल पर अटकी पतंग रहे..जाड़ो की छ्त पर बिछी पलंग रहे..
गिनतियों का आसमान रहे..
गुलजार जीते रहें...कि मेरा भी कुछ सामान रहे...
और हो इक गिरहा .. छन छन कर बरसात भी..
अलसाती सी दूब हो..
लहलहाती भी खूब हो..
खिड़की पर चांद का बसेरा हो,
हर रोशनी से खूबसूरत अन्धेरा हो..
ओस की फ़ुहारे हो..
ढलती शामो मे किनारे हो..
इक नदी का छपछपाना हो..
होटो में दबी गजल का गुनगुनाना हो..
कच्ची नरम मिट्टी को कुरेदती..
किसी आम का बचपन भी हो..
गुलमोहरों को एक टक निहारती...
किसी पीपल का यौवन भी हो..
किसी डाल पर अटकी पतंग रहे..जाड़ो की छ्त पर बिछी पलंग रहे..
गिनतियों का आसमान रहे..
गुलजार जीते रहें...कि मेरा भी कुछ सामान रहे...