चाय फ़ीकी नहीं है...


author: kamal bhatt

column : kamal ki kalam se...
 
चाय फ़ीकी है ..ये लगा मेरे मेहमानो को..
हमने छुपाई है मिसरी हाथो के पीछे...


जरा जरा चासनी मे डुबा कर देता हूं..
रखी है कड़्वाहट इन मसखरी बातो के पीछे...


हर बात में रात का ज़िक्र करता हूं..
कितनी करवटे बदल गई यादों के पीछे..


जो हमदम है,, वो हमकदम नहीं..
जो हमकदम थे ,चले गए ख्वाबों के पीछे..


पीरान ! अब भी जिन्दगी के हैं अन्दाज वही..
आंखे बुझ गई !पतंगे जलते रहे आंखो के पीछे...
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