Where are you?


वहा की धूप भी अच्छी लगती थी यहा के एसी मे भी आराम नही……
वहा घास पे बैठना भी अछा लगता था यहा चयर्स पे भी चैन नही……

वहा के समोसे भी स्वादिष्ट थे यहा के बर्गर मे भी स्वाद नही…..

वहा की चाय भी मीठी लगती थी यहा की आइस टी मे भी मिठास नही…..



वो ब्लू यूनिफॉर्म मे एक कॉन्फिडेन्स था आज जीन्स मे भी कंफर्ट नही…..
वो ब्लॅक शूस मे जो बात थी वो आज अडीडस और नाइकी मे नही…..
कॉलेज बस की आखरी सीट पे बैठ के गये हुए गानो की जैसे अब धुन भी याद नही…..
अब बस सामने एक कंप्यूटर स्क्रीन है और हस्ने लायक कोई मज़ाक नही…..



फॅकल्टी से लड़ते वक़्त ये पता भी न था की मॅनेजर के सामने कुछ बोल भी ना पाएँगे…..
अब तो ये भी नही पता होता की ह्म वापस घर क्ब जाएँगे…..
एक झूठी मुस्कुराहट लिए ह्म जैसे जी रहे है….
ज़िंदगी का कोई भी गम हो ओफीस के काम के साथ पी रहे है…..



सुबह का एक मेसेज “आज नही चलते यार”….
अब “इट्स 9.30 Where are you?” मे बदल गया है…..
पहले जिस हस्ती को लगभग पूरा कॉलेज जानता था….
आज वो एक क्यूबिकल मे सिमट के रह गया है…..



पहले एक दूसरे की पार्टी मे जैसे बिल बढ़ाने जाते थे…..
आज की पार्टियो मे थोड़ी सी खुशिया पाने जाते है…..
पहले बेस्ट फ़्रेंड बर्थडे पे केक ना लाए तो गुस्सा हो जाते थे…..
आज तो बेस्ट फरन्ड से बर्थडे पे मिल भी न पाते है…..



वो कॉलेज ग्रूप की लड़ाइया जो अगले दिन ही भूल जाते थे….
आज डेवेलपर और टेसटर की जंग मे तब्दील हो गयी है…..
एग्ज़ॅम हॉल की “एक लाइन बता दे यार”….
वो एक लाइन अब गूगले पे भी न्ही मिल रही है……



पहले जिन्हे घंटो बैठ कर हसाते थे……
आज उनसे जी भर के बात करने का भी टाइम नही है…..
पहले जिनसे मिले बिना दिन न्ही कटता था….
आज उनके बिना ज़िंदगी काट रही है……



वो मिड सेम्म मे एक शब्द भी ना लिखने की आज़ादी…..
आज जैसे बड़ी बड़ी एक्सेल शीट अपडेट करने की मजबूरी मे तब्दील हो गयी है……
“तूने कितना पढ़ा प्लीज़ मुझे भी पढ़ा दे यार” यहा कोई न्ही सुनता…..
“आई हॅव डन माई वर्क प्लीज़ रिव्यू इट” ही हमारी फेव-रेट लाइन बन गयी है……



दिल कहता सारी बंदिशे तोड़ के वापस चला जा….
लोग कहते है तू बदल गया है यार…..
और मैं कहता हू मेरी तो पूरी दुनिया ही बदल गयी है….


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